Thursday, December 4, 2008

इंग्लैंड का भारत दौरा

बस आज ही एक ख़बर मैंने पढ़ी है। इंग्लैंड ने भारत जाकर टेस्ट मैच खेलने का निर्णय ले लिया है। यदि इंग्लैंड ने यह निर्णय लिया है तो यह आतंकवादियों के ऊपर तमाचा है। यह आतंकवाद पर खेल की जीत है। दरअसल जिस तरह से इंग्लैंड की टीम वापस लौटी थी । वह प्रशंषा के लायक नहीं थी। लेकिन मुझे इस बात की खुशी है की इस आतंकवाद के जंग में अंग्रेज भी भारतियों के साथ है। इंग्लैंड की टीम का भारत में हारना और जितना कोई मायने नहीं रहा। लेकिन इंग्लैंड के खिलाड़ियों के भारत जाने निर्णय ने उन्हें सबसे बड़ी जीत का सेहरा उनके सर पर बाँध दिया है। टेस्ट सीरिज का महत्ब इंग्लैंड की टीम का भारत का दौरा करना था। आतंकवादियों के निशाने पर भारत के अलावा अमेरिका, इंग्लैंड और उनके मित्र देश हैं। मैं इन देशों से विनम्र विनती करता हूँ की आतंकवाद के खिलाफ साझा कार्यक्रम बनाकर उन्हें मसल कर रख दे। तभी बेगुनाहों का खून बहने से हम रोक सकेंगे। माँ की गोद सुनी नहीं होगी। किसी पत्नी का सुहाग नहीं उजरेगा। पिता का साया सर से नहीं उठेगा। प्रेम और भाई चारे के चार दिन की छोटी से जिंदगी को हम जी पाएंगे।

Friday, November 28, 2008

शहीदों को शत शत नमन

मुंबई में आतंकी हमले में वीरगति को प्राप्त करने वाले शहीदों को शत शत नमन। भारत एक है। देश के दुश्मनों, भारत में कुर्बानी की प्रथा सदियों से रही है। एक ज़माने में देश प्रेम से ओत प्रोत आजादी के दीवानों ने अपनी जान देकर देश को गुलामी की दास्तान से मुक्ति दिलाई। रूप बदल गया है। कुबानी के तरीके बदल गए हैं। लेकिन देश प्रेम में भारतीय जम्बाजो की गाथाएँ अब भी लोगों की जुबान पर है। मुंबई को एक बार फिर दहशतगर्दों से मुक्ति दिलाने में जांबाजों ने अपनी जीवन की आहुति दे दी। जांबाजों ने अपने आगे देश को प्राथमिकता दी। एक बार फिर मुझे देश के जांबाजों को शत शत बार नमन करने को दिल करता है। देश के लिए जान देने वालों से हमें सीख लेनी चाहिए। यहाँ पर मुझे शहीदों के एक लाइन खास तौर से याद आता है की

शहीदों चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशान होगा....

यहाँ मैं एक बात कहना चाहूँगा की कुर्बानिया बेकार नहीं जाती है। क़ुरबानियां बेकार गयीं तो वह जंग क्या, आंख से न टपका तो वह लहू क्या? इकबाल साहब की यह पंक्ति से मैं उन देश भक्तों की शहादत को नमन करता हूं.

Wednesday, October 15, 2008

दीपिका

मुझे जीत का पुरा विश्वाश था। : दीपिका
पुणे, १५ अक्टूबर,
मुझे जीत का पुरा विश्वाश था। उक्त बातें भारत की दीपिका पटेल ने कॉमनवेल्थ यूथ गेम्स की १० मी एयर पिस्टल (mahila) में गोल्ड मैडल जीतने के बाद कही। ८ साल की उम्र से निशानेबाजी में के खेत्र में उतरनेवाली दीपिका ने कहा की फाइनल मुकाबले के समय कोई दबाव नहीं था। पाँच नेशनल और दो इंटरनेशनल में हिस्सा ले चुकी दीपिका के लिए यह तीसरा इंटरनेशनल टूर्नामेंट है। पहली बार इंटरनेशनल लेवल पर पदक जीतने के बावजूद ठंडे स्वभाव की दीपिका ने पत्रकारों के हर सवालों का उत्तर बड़ी ही सहजता से दिया। वाराणसी की रहनेवाली दीपिका इस समय १२विकी छात्रा है। दीपिका ने कहा की इस समय उसे विदेशी कोच की जरूरत नहीं है। फिलहाल एस बी भट्टाचार्या से training ले रही दीपिका मार्च में होने बाले १२वी की तैयारी में लगी हुई है। उसने कहा की अब डेल्ही में २०१० में होनेवाले कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक जीतने के लक्ष्य बनाया है। अंजली भगवत को अपना आदर्श मानने वाली दीपिका का अन्तिम लक्ष्य ओलंपिक मैडल जीतना है.

Tuesday, August 19, 2008

बधाई

संजीब भाई ,

द्रोणाचार्य पुरस्कार पाने के लिए बधाई। संजीब भाई आप अपना एक बैओदाता भेज देन और अपना एक इंटरव्यू भी भेज देनमेरे मेल पर अक्टूबर में जमशेदपुर आने पर मिलूँगा।

आदित्य झा
सब एडिटर , लोकमत समाचार
औरंगाबाद , महाराष्ट्र
सेल नम्बर - 09765890731

Friday, July 11, 2008

लोकमत समाचार औरंगाबाद के मुख्य उप संपादक हसन नजमी को श्रधान्जली

लोकमत समाचार औरंगाबाद के मुख्य उप संपादक हसन नजमी का आज तड़के ५ बजे निधन हो गया। ५३ वर्षीय नजमी साहब लोकमत समाचार के औरंगाबाद संस्करण की स्थापना काल से जुड़े हुए थे। स्वभाव से मृदुभाषी होने के साथ कुशल रिपोर्ट भी थे। पिछले १६ वर्षों के अपने कार्यकाल के में नजमी साहब ने बेहतरीन छवि बनायी और नए पत्रकारों के लिए उदाहरण बन गए। अपने पीछे पत्नी के अलावा तीन बच्चे का भरा पूरा परिवार छोड़ गएँ हैं। नजमी साहब के असमय निधन के कारण लोकमत समाचार के सम्पादकीय विभाग के अलावा उनके पुराने साथ शोकाकुल हैं। हम सभी उन्हें भावभीनी श्रधान्जली व्यक्त करते हैं.

Thursday, July 10, 2008

तलवा चाटने वालों से सावधान

एक बात मुझे समझ में नहीं आता है कि कुछ पत्रकार सम्पादक का तलवा चाटने में क्यों लगे रहतें हैं। सम्पादक को सम्मान देना बुरी बात नहीं है , लेकिन क्या बताऊ ...
मैं सम्पादक का आदर करता हूँ लेकिन काम के आलावा मैं कोई बात नहीं करना चाहता हूँ। वास्तव में मैं यही करता भी हूँ। परन्तु क्या कहूं। एक बंद अपने साथ काम करता है .उसको देखता हूँ दिन हो या रात , हमेशा संपादक को ऑफिस की कहानी बताता रह्या है। मेरे कई सहकर्मियों ने उसकी इस आदत के कारण अन्य जगहों पर जानाशुरू कर दिया है। सच तो ये है की मैं भी किसी अन्य स्थान पर नई पारी खेलने के मूड में हूँ। मैं अपने ऐसे दोस्तों को कहना चौंगा की भइया चाटुकार पत्रकार खासकर जो तलवा चाटकर अपने गुजारा करतें हैं, सावधान हो जाओ.

Friday, June 27, 2008

ताज के लिए संदेश

ताज भाई ,
कैसे हो । मैंने भड़ास पर रांची इ-नेक्स्ट की लांचिंग की ख़बर पढ़ी। मुझे भी रांची ११ जून को बुलाया गया था लेकिन पिछले तीन महीने से मैं छुट्टी लेता रहा इसीलिए मैं रांची नहीं आ सका। मैंने शर्मिष्ठा मैडम , जो हमलोगों से मिली थी, से कहा की मैडम फ़ोन पर मुझसे बातें कर लें क्योंकि हम पहले भी मिले थे। लेकिन मैडम ने कहा की यह सम्भव नहीं है। रांची ही आना पढेगा । लेकिन मुझे छुट्टी नहीं मिली और तुम्हारा सहकर्मी होते-होते रह गया। खैर ताज भाई यदि कोई ऐसा चांस मिले तो बताना। मेरा मोबाइल का नम्बर है ९७६५८९०७३१ मेरा ब्लॉग पढ़ते रहो। भड़ास में भी पढ़ सकते हो।

आदित्य झा , सब एडिटर (खेल),
लोकमत समाचार , औरंगाबाद, लोकमत भवन , जालना रोड पिन कोड -431210

Friday, June 20, 2008

मुगालतें में नहीं रहें

आजकल कई पत्रकार इसी मुगालते में जीतें हैं की यदि मैं ऑफिस नहीं गया तो पता नहीं काम कैसे होगा। अरे भइया सपना क्यों देखते हो ? पता नहीं क्यों ऐसे लोग ऑफिस के लिए परेशां होतें रहतें हैं। एक बार मैंने ऐसे ही एक पत्रकार महोदय से पुचा की आप ऐसा क्यों सोचते हैं की मेरे बिना कम नहीं होगा । उसने तपाक से कहा-अरे तुम नहीं समझोगे । उसने आज तक उत्तर नहीं दिया। हल ही में मेरी एक सहयोगी से इस बात का उत्तर दे दिया। कम्बखत कहता है की मेरे जैसा कम करने वाला कहाँ है। जब तक ऑफिस में न रहूँ मेरी तरह का कम नहीं हो पता। अरे भाई तुम क्या कितने बड़े तीसमार खां हो क्या मैं नही जनता। अरे kइसी और को बेवकूफ बनाओ। मैं एक बात यहाँ यह कहना चाहता हूँ के उस शख्स को एडिट करने आता ही नहीं। मैं सोचता हूँ की अरे नहीं आता है तो फेंको मत॥ लेकिन कम्बखत लचर है। एक बार मैं उसकी एडिट की हुई ख़बर पड़ रहा था। आग लगने की घटना घटी थी॥ उसने लिखा की दो लोग घायल तो hउए है लेकिन किसी की जीवित हानि नहीं हुई है। मैं यह नहीं कहता है की मैं बहुत बड़ा रिपोर्टर या उप संपादक हूँ लेकिन मैं यह भी नहीं कहता हूँ की मैं नहीं तो अखबार कैसे चलेगा। मुझे लगता है की ऐसे लोगो को धरातल पर आना चाहिए और केवल काम और काम से मतलब रखना चाहिए।

Monday, June 16, 2008

भड़ास: अब देखते रहना की कितनी भड़ास है

भड़ास: अब देखते रहना की कितनी भड़ास है
police ki jaat badi kamini hai. police sudharnewali nahin hai. keval manvadhikaron ki baat karti rahti hai. kaun sudharega inko ? kuchch barsh pahle ki baat hai Madhepura (Bihar) me samanti parvarti ka ek dabang yuvak ne ek mahila ko baal pakad kar aur ghasit kar buri taraha se pitai ki thi . Baad me D M se patrakaron ne sawala kiya to uska kahna tha ki dekhte hai, report nahin mili hai... Bhagwan hi ab malik ....