Friday, June 20, 2008

मुगालतें में नहीं रहें

आजकल कई पत्रकार इसी मुगालते में जीतें हैं की यदि मैं ऑफिस नहीं गया तो पता नहीं काम कैसे होगा। अरे भइया सपना क्यों देखते हो ? पता नहीं क्यों ऐसे लोग ऑफिस के लिए परेशां होतें रहतें हैं। एक बार मैंने ऐसे ही एक पत्रकार महोदय से पुचा की आप ऐसा क्यों सोचते हैं की मेरे बिना कम नहीं होगा । उसने तपाक से कहा-अरे तुम नहीं समझोगे । उसने आज तक उत्तर नहीं दिया। हल ही में मेरी एक सहयोगी से इस बात का उत्तर दे दिया। कम्बखत कहता है की मेरे जैसा कम करने वाला कहाँ है। जब तक ऑफिस में न रहूँ मेरी तरह का कम नहीं हो पता। अरे भाई तुम क्या कितने बड़े तीसमार खां हो क्या मैं नही जनता। अरे kइसी और को बेवकूफ बनाओ। मैं एक बात यहाँ यह कहना चाहता हूँ के उस शख्स को एडिट करने आता ही नहीं। मैं सोचता हूँ की अरे नहीं आता है तो फेंको मत॥ लेकिन कम्बखत लचर है। एक बार मैं उसकी एडिट की हुई ख़बर पड़ रहा था। आग लगने की घटना घटी थी॥ उसने लिखा की दो लोग घायल तो hउए है लेकिन किसी की जीवित हानि नहीं हुई है। मैं यह नहीं कहता है की मैं बहुत बड़ा रिपोर्टर या उप संपादक हूँ लेकिन मैं यह भी नहीं कहता हूँ की मैं नहीं तो अखबार कैसे चलेगा। मुझे लगता है की ऐसे लोगो को धरातल पर आना चाहिए और केवल काम और काम से मतलब रखना चाहिए।

1 comment:

Anonymous said...

:) shai bat hai kisi ko bhi apne uper ghmand nahi hona chahiye... acha laga aap ka ye article padh kar.....
aur han aap mujhe apna phone no jaroor de dijyega main aapka phone nahi le saka yaad ayaa ...kahir
mera e-mail : taj_khan005@yahoo.co.in